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क़दम क़दम बढ़ाए जा - वंशीधर शुक्ल ( कविता वाचन)

क़दम क़दम बढ़ाए जा - वंशीधर शुक्ल   क़दम क़दम बढाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा ये ज़िन्दगी है क़ौम की तू क़ौम पर लुटाए जा । उड़ी तमिस्र रात है, जगा नया प्रभात है, चली नई ज़मात है, मानो कोई बरात है, समय है मुस्कराए जा ख़ुशी के गीत गाए जा ये ज़िन्दगी है क़ौम की तू क़ौम पर लुटाए जा । जो आ पडे कोई विपत्ति मार के भगाएँगे, जो आए मौत सामने तो दाँत तोड़ लाएँगे, बहार की बहार में, बहार ही लुटाए जा । क़दम क़दम बढाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा ये ज़िन्दगी है क़ौम की तू क़ौम पर लुटाए जा । जहाँ तलक न लक्ष्य पूर्ण हो समर करेगे हम, खड़ा हो शत्रु सामने तो शीश पै चढ़ेंगे हम, विजय हमारे हाथ है क़दम क़दम बढाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा क़दम बढ़े तो बढ़ चले आकाश तक चढ़ेगे हम लड़े है लड़ रहे है तो जहान से लड़ेगे हम, बड़ी लड़ाइयाँ हैं तो बड़ा क़दम बढ़ाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा निगाह चौमुखी रहे विचार लक्ष्य पर रहे जिधर से शत्रु आ रहा उसी तरफ़ नज़र रहे स्वतंत्रता का युद्ध है स्वतंत्र होके गाए जा क़दम क़दम बढाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा ये ज़िन्दगी है क़ौम की तू क़ौम पर लुटाए जा ।
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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती - सोहनलाल द्विवेदी ( कविता वाचन)

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती - सोहनलाल द्विवेदी ( कविता वाचन)  लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगों में साहस भरता है चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

कुछ भी बन बस कायर मत बन - नरेन्द्र शर्मा ( कविता वाचन)

  कुछ भी बन बस कायर मत बन - नरेन्द्र शर्मा कुछ भी बन बस कायर मत बन, ठोकर मार पटक मत माथा  तेरी राह रोकते पाहन। कुछ भी बन बस कायर मत बन। युद्ध देही कहे जब पामर, दे न दुहाई पीठ फेर कर या तो जीत प्रीति के बल पर या तेरा पथ चूमे तस्कर प्रति हिंसा भी दुर्बलता है पर कायरता अधिक अपावन कुछ भी बन बस कायर मत बन। ले-दे कर जीना क्या जीना कब तक गम के आँसू पीना मानवता ने सींचा तुझ को बहा युगों तक खून-पसीना कुछ न करेगा किया करेगा रे मनुष्य बस कातर क्रंदन कुछ भी बन बस कायर मत बन। तेरी रक्षा का ना मोल है पर तेरा मानव अमोल है यह मिटता है वह बनता है यही सत्य कि सही तोल है अर्पण कर सर्वस्व मनुज को न कर दुष्ट को आत्मसमर्पण कुछ भी बन बस कायर मत बन।

पथिक से - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ : कविता वाचन

  पथिक से - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ पथ भूल न जाना पथिक कहीं।  पथ में काँटे तो होंगे ही  दूर्वादल, सरिता, सर होंगे  सुंदर गिरि, वन, वापी होंगी  सुंदर सुंदर निर्झर होंगे  सुंदरता की मृगतृष्णा में  पथ भूल न जाना पथिक कहीं!  जब कठिन कर्म पगडंडी पर  राही का मन उन्मुख होगा  जब सब सपने मिट जाएँगे  कर्तव्य मार्ग सन्मुख होगा  तब अपनी प्रथम विफलता में  पथ भूल न जाना पथिक कहीं!  अपने भी विमुख पराए बन कर  आँखों के सन्मुख आएँगे  पग-पग पर घोर निराशा के  काले बादल छा जाएँगे  तब अपने एकाकी-पन में  पथ भूल न जाना पथिक कहीं!  जब चिर-संचित आकांक्षाएँ  पलभर में ही ढह जाएँगी  जब कहने सुनने को केवल  स्मृतियाँ बाक़ी रह जाएँगी  विचलित हो उन आघातों में  पथ भूल न जाना पथिक कहीं!  रणभेरी सुन कह ‘विदा, विदा!  जब सैनिक पुलक रहे होंगे  हाथों में कुंकुम थाल लिए  कुछ जलकण ढुलक रहे होंगे  कर्तव्य प्रेम की उलझन में  पथ भूल न जाना पथिक कहीं!  कुछ मस्तक कम पड़ते होंगे  जब महाकाल की माला में  माँ माँग रही होगी आहुति  जब स्वतंत्रता की ज्वाला में  पलभर भी पड़ असमंजस में  पथ भूल न जाना पथिक कहीं! 

तृतीय विश्व युद्ध की आकांक्षा - भाषण (हिन्दी)

तृतीय विश्व युद्ध की आकांक्षा - भाषण हिन्दी    युद्ध अशांति का द्योतक छिनता सांसें बेकसूरों की घृणा, इर्ष्या, अहं हैं जड़ बड़प्पन है अरमां उसकी किसी भी युद्ध की शुरुआत एक छोटी सी गलती से होती है और खात्मा मूर्खता पर होती है। युद्ध कभी भी शांति का परिचायक नहीं रहा। जब भी युद्ध हुए, जान-माल, प्रकृति, सम्पत्ति की क्षति हीं हुई। विगत युद्धों का उद्देश्य केवल बड़प्पन जाहिर करना रहा है। वर्तमान दुनिया में भी तीसरे विश्व युद्ध की आहट सुनाई पड़ रही है। खैर; आज विश्व समाज में शांति, परस्पर विश्वास व सद्भाव का वातावरण कायम करने के लिए एक और विश्व युद्ध की आवश्यकता महसूस हो रही है। सुप्रभात! आदरणीय प्राचार्य महोदय, शैक्षणिक प्रधान महोदय, शिक्षकवृंद एवं प्रिय साथियों, मैं अंकित कक्षा दसवीं का छात्र,तृतीय विश्व युद्ध की आकांक्षा विषय पर अपने विचार प्रस्तूत करने जा रहा हूं। आप लोग सोच रहे होंगे, स्वयं मैं भी सोचा करता था, यह क्या पागलपन है? विश्व शांति के लिए एक और विश्व युद्ध? विगत प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध का भयंकर हाड़कंपाने वाला नज़ारा, दुबारा भला कौन देखना चाहेगा? जो खासकर हिरोशिमा व नागासाकी

हो गई है पीर पर्वत सी - हिन्दी कविता वाचन

 सुप्रभात! परम आदरणीय प्राचार्य महोदय, शैक्षणिक प्रधान महोदय, आदरणीय गुरूजन एवं प्रिय साथियों  आज मैं __________ कक्षा _____ए /बी /सी का /की छात्र/ छात्रा,आपके समक्ष “हो गई है पीर पर्वत सी” नामक कविता प्रस्तुत करने जा रहा/ रही हूँ। यह कविता दुष्यंत कुमार द्वारा लिखी गई है। यह कविता हमें आंदोलित करती है। मुझे यह कविता इसलिए पसंद है क्योंकि यह हमें बेहतर बदलाव के लिए आह्वान करती है। मुझे उम्मीद है कि आपको यह कविता पसंद आएगी। हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। धन्यवाद! आपका दिन शुभ हो! जय हिंद!